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Thursday, 9 May 2024
ACT 166
धारा 166 आईपीसी - लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को क्षति पहुँचाने के आशय से विधि की अवज्ञा करना। , IPC Section 166 ( IPC Section 166. Public servant disobeying law, with intent to cause injury to any person )
IPC Section 166. Public servant disobeying law, with intent to cause injury to any person ( English )
भारतीय दंड संहिता की धारा 166 के अनुसार,
जो कोई लोक सेवक होते हुए विधि के किसी ऐसे निदेश की जो उस ढंग के बारे में हो जिस ढंग से लोक सेवक के नाते उसे आचरण करना है, जानते हुए अवज्ञा इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसी अवज्ञा से वह किसी व्यक्ति को क्षति पहुँचेगी, तो उसे किसी एक अवधि के लिए सादा कारावास से जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
लागू अपराध
लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को क्षति पहुँचाने के आशय से विधि की अवज्ञा करना।
सजा - एक वर्ष सादा कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों।
यह एक जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 166 आई. पी. सी. (किसी लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को क्षति पहुँचाने के आशय से कानून की अवज्ञा करना)
भारतीय दंड सहिंता, 1860 की धारा 166 में किसी सरकारी नौकरी करने वाले व्यक्ति या किसी लोक सेवक के द्वारा होने वाले एक अपराध के बारे में चर्चा की गयी है, इसमें अपराध के साथ - साथ उसके निवारण के लिए और भविष्य में अपराध को घटित होने से रोकने के लिए सजा का प्रावधान भी दिया गया है। इस धारा 166 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जो किसी सरकारी नौकरी के पद पर पदस्थ है, वह एक लोक सेवक होने के नाते, जानबूझकर किसी कानून के किसी भी प्रावधान का इस प्रकार उल्लंघन या उस कानून की अवज्ञा करता है, जिस प्रकार सरकार के द्वारा उस लोक सेवक को उस कानून का संचालन करने के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं। वह लोक सेवक या सरकारी नौकरी करने वाला व्यक्ति इस बात को अच्छे से जनता है, कि उसके द्वारा ऐसा कार्य करने से या उस कानून का उल्लंघन करने से किसी अन्य व्यक्ति को हानि पहुंच सकती है, या उस अन्य व्यक्ति को किसी प्रकार की चोट पहुंच सकती है, तो ऐसी स्तिथि में वह लोक सेवक भारतीय दंड संहिता की धारा 166 के अनुसार अपराध करता है, और उसे उसके इस अपराध के लिए उचित दंड भी दिया जाता है।
दूसरे शब्दों में यदि कोई सरकारी कर्मचारी या कोई लोक सेवक किसी अन्य व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार करता है, या वह अपने पद का गलत प्रयोग करके उस व्यक्ति पर होने वाले अत्याचारों का कारण बनता है, या वह खुद ही उस व्यक्ति पर उसे चोट पहुंचाने के उद्देश्य से ही आक्रमण करता है, तो ऐसा लोक सेवक भारतीय दंड संहिता की धारा 166 में वर्णित अपराध के अनुसार अपराधी होता है, और अपने द्वारा किये गए कृत्य के लिए सजा का हक़दार भी होता है।
धारा 166 के अनुसार सजा का प्रावधान
आमतौर पर लोग किसी भी शिकायत के लिए सरकारी कार्यालय में जाने से कतराते हैं, क्योंकि उनके मन में यह वहम होता है, कि उस सरकारी कार्यालय में कोई अधिकारी या कर्मचारी उनके साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार करेगा, या उनको परेशान करेगा। परंतु उस आम नागरिक को इस बात की जानकारी नहीं होती है, कि भारतीय कानून के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी व्यक्ति से किसी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं कर सकते हैं, यदि कोई लोक सेवक किसी अन्य व्यक्ति को परेशान करता हुआ पाया जाता है, तो उसे उसके इस कृत्य के लिए उचित दंड का प्रावधान दिया गया है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 166 के अनुसार, सरकारी कर्मचारी जो किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाने के इरादे से कानून का उल्लंघन करता है, उसे कारावास की सजा से दण्डित किया जाता है, जिसकी समय सीमा को अधिकतम 1 बर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। भारतीय दंड की धारा 166 में भी अन्य अपराधों की भांति कारावास के दंड के साथ - साथ आर्थिक दंड का प्रावधान भी दिया गया है। यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी आम आदमी को किसी प्रकार की चोट पहुँचता है, या अपमान करता है, तो उस सरकारी कर्मचारी पर आई. पी. सी. का यह प्रावधान लागू हो सकता है।
आई. पी. सी. के 22 वें अध्याय में किसी लोक सेवक द्वारा किसे अन्य व्यक्ति के किये गए अपमान के अपराध के लिए कारावास की सजा या जुर्माना भी शामिल है। यह अपराध आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार एक जटिल अपराध माना गया है। इसके लिए सर्वप्रथम उस सरकारी कर्मचारी के द्वारा किये गए कार्य के लिए अपने नजदीकी किसी भी पुलिस स्टेशन में एफ. आई. आर. दर्ज कराना अनिवार्य होता है। एफ. आई. आर. दर्ज करने के बाद ही कानूनी कार्यवाही का पहला कदम शुरू किया जाता है।
धारा 166 के मामलों में वकील की जरुरत क्यों होती है?
भारतीय दंड संहिता में धारा 166, का अपराध एक बहुत ही संगीन अपराध है, जिसमें एक दोषी को कारावास की सजा के साथ - साथ आर्थिक दंड का भी प्रावधान दिया गया है, जिसमें कारावास की सजा की समय सीमा को 1 बर्ष, तक बढ़ाया जा सकता है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और किसी लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को क्षति पहुँचाने के आशय से कानून की अवज्ञा करने जैसे बड़े मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो, और धारा 166 जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो। जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।
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